Saturday, November 24, 2007

शायरी : अर्ज किया है..

अकबर इलाहाबादी
हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करतें हैं तो चरचा नहीं होती|

'फैज' रतलामी

जब लेके मस्त नजरों का वो जाम आ गया, हमपे यूँ मुफ्त पीने का इल्जाम आ गया|

मीर ताकि 'मीर'
यारो, खता मुआफ मेरी, मैं नशे में हूँ,
सागर में मय, मय में नशा, मैं नशे में हूँ|

'गाफिल' भिवानवी
जो थाम ना सको मेरा बाजू तो साकिया,
इक जामे मय पिला के गिरा दीजिए मुझे|

No comments: